Yaduvansh Sahay

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यदुवंश सहाय

जन्म : 12 फरवरी, 1824

भारतीय पुनर्जागरण को दीप्त भूमिका प्रदान करने में महर्षि दयानन्द का स्थान प्रमुख है। वैदिक साहित्य के प्रति वे इतने श्रद्धालु और निष्ठावान थे कि पूरी हिन्दू जाति को आर्यधर्म की ओर लौटना उनका उद्देश्य बन गया। वेदों के प्रति उनकी भक्ति अनेक को दुराग्रह लग सकती है, किन्तु दयानन्द ने शुद्ध राष्ट्रीय पुनर्जागरण की एक नई धारा को समानान्तर उपस्थित करके बहुत बड़ा कार्य किया, इसमें सन्देह नहीं। वे इसी कारण यदि ब्रह्मसमाज, प्रार्थना समाज या ईसाई मत पर आक्रामक दृष्टिकोण रखते थे तो इसे अतिवादी कहकर टाला नहीं जा सकता, क्योंकि दयानन्द के आर्यसमाजी आन्दोलन ने दो विचारधाराओं के टकराव (इनकाउंटर) की स्थिति खड़ी करके कइयों को आत्मपरीक्षण का अवसर भी दिया।

दयानन्द ने अपने धार्मिक आन्दोलन को पूर्ण सामाजिक पीठिका भी प्रदान की। वर्ण-व्यवस्था की प्रगतिशील व्याख्या, ऐंग्लो वैदिक स्कूलों की स्थापना, नारी शिक्षा का आयोजन, रूढ़िवादी संस्कारों का विरोध, सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार उनकी रचनात्मक प्रतिभा की देन है। उन्होंने सर्वसंघ समन्वय के प्रयत्नों द्वारा पुनर्जागरण को संगठित गम्भीरता देने का भी प्रयत्न किया।

निधन : 30 अक्टूबर, 1883

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