Vishwanath Narvane

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विश्वनाथ एस. नरवणे

 

1946 से 1965 के दौरान प्रो. विश्वनाथ एस. नरवणे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक थे। फिर पुणे विश्वविद्यालय में फ़‍िलासफ़ी विभाग के संस्थापक अध्यक्ष होकर चले गए।

प्रो. नरवणे की साहित्य में गहरी दिलचस्पी थी। शरतचन्‍द्र और प्रेमचन्‍द पर उनकी किताबें प्रमाण हैं। उन्होंने प्रेमचन्‍द जन्मशती वर्ष 1980 में ‘Premchand : His life and works’ नाम से प्रेमचन्‍द पर एक मुकम्मल किताब लिखी थी। अमृत राय के मित्र रहे प्रो. नरवणे प्रेमचन्‍द से दो बार मिल चुके थे।

दर्शनशास्त्र और प्राचीन संस्कृत साहित्य का गम्भीर पाठक होने के नाते प्रो. नरवणे ने प्रेमचन्‍द के पात्रों के विकास और सम्‍भावनाओं की पड़ताल करने के साथ व्यक्ति के रूप में प्रेमचन्‍द का मूल्यांकन किया है। उनके पिता इंजीनियर थे जो लखनऊ, बस्ती, बनारस और प्रतापगढ़ में तैनात रहे। उनके साथ नरवणे भी इन इलाक़ों से परिचित हुए और उस समाज को नजदीक से देखा, जिसके बारे में प्रेमचन्‍द की रचनाएँ बताती हैं। इसीलिए वे अपनी किताब में प्रेमचन्‍द के कथा साहित्य में पूर्वी उत्तर प्रदेश के ‘लोकेल’ को भी इंगित करते चलते हैं।

राजकमल प्रकाशन से प्रो. नरवणे की ‘आधुनिक भारतीय चिन्‍तन’ किताब 1966 में प्रकाशित हुई थी, जिसका अंग्रेज़ी से हिन्‍दी में अनुवाद नेमिचन्द्र जैन ने किया था।

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