Mirza Ghalib

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मिर्ज़ा ग़ालिब

भारतीय साहित्य की एक गौरवान्वित शख़्सियत।

जन्म : 27 दिसम्बर, 1797; आगरा।

उर्दू और फ़ारसी, दोनों भाषाओं के अज़ीम शाइर और गद्यकार। सन् 1857 के इंक़लाब पर ‘दस्तंबू’ शीर्षक एक यादगार ऐतिहासिक पुस्तक लिखी। उर्दू और फ़ारसी में लिखे गए ग़ालिब के असंख्य पत्र दोनों भाषाओं के साहित्य में उत्कृष्ट दर्जा रखते हैं।

सन् 1816 में ग़ालिब के अपने हाथ लिखी हुई एक बयाज़ (जिसे ‘नुस्ख़ा-ए-भोपाल’ कहा जाता है) से पता चलता है कि ‘दीवान-ए-ग़ालिब’ (उर्दू) में संकलित अधिकतर ग़ज़लें 19 वर्ष की उम्र में लिख चुके थे। इसके बाद वो ज़्यादातर फ़ारसी में लिखते रहे।

ग़ालिब ने फ़ारसी में कुल ग्यारह मसनवियाँ लिखीं। चिराग़े-ए-दैर’ उनकी तीसरी मसनवी है। यह बनारस पर लिखी गई कविताओं में श्रेष्ठ कही जाती है। इसकी एक विशेषता यह भी है कि ईरान, अफ़गा़निस्तान और ताजुबेकिस्तानवासियों को पावन-पुनीत बनारस नगरी की अहमियत और हिन्दुस्तान की अज़मत से परिचित करानेवाली प्रथम और अप्रतिम रचना है।

निधन : 15 फरवरी, 1869

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