Kapila Vatsayan

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कपिला वात्स्यायन

जन्‍म : 25 दिसम्‍बर, 1928

समाज-सुधारकों, राष्ट्र-सेवकों, लेखकों के वंश में जन्मीं, पली-बढ़ीं कपिला जी अंग्रेज़ी साहित्य में सर्वोत्तम गुणों से एम.ए. उत्तीर्ण कर बारबोर मेमोरियल फ़ेलोशिप पर अमेरिका गईं, जहाँ श्रेष्ठ साहित्य-समीक्षकों, ललित-कला, इतिहासकारों और आधुनिक नृत्य-विशारदों से उन्होंने शिक्षा ग्रहण की, यथा—हान्या होम तथा जुआन दि लेबान से। भारत में उन्‍होंने अपना शोध-प्रबन्ध डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल के निर्देशन में पूरा किया, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से उस पर पीएच.डी. मिली।

संगीत द्वारा नृत्य की शिक्षा को शास्त्रीय पद्धति से आरम्भ कराने में कपिला जी का विशेष योगदान रहा। बाला सरस्वती जैसी नृत्याचार्य को उन्‍होंने भारत से बाहर विश्व में पहली बार प्रस्तुत किया। उनकी संगीत, नृत्य और नाटक के क्षेत्र में सेवाओं के लिए 1970 में संगीत नाटक अकादमी ने उन्हें ‘फ़ेलो’ (मानद सदस्य) निर्वाचित किया। 1977 में वे उस संस्था की उपाध्यक्षा नामित हुईं। 1982 में उन्‍हें बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा सम्मानित डी.लिट्. दी गई। 1975 में उनको ‘गीतगोविन्द’ पर शोधकार्य के लिए ‘नेहरू फ़ेलोशिप’ दी गई।

कपिला जी 1955 में ‘पद्मभूषण’, 1966 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए ‘रेमन मैग्सेसे पुरस्कार’, 1977 में हस्‍तशिल्‍प को बढ़ावा देने के लिए ‘यूनेस्‍को पुरस्‍कार’, 1987 में ‘पद्मविभूषण’ आदि से सम्‍मानित की गईं।

वे केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय से संयुक्त शिक्षा सलाहकार भी रहीं। यूनेस्को जनरल कॉन्फ़्रेंस के भारतीय प्रतिनिधिमंडल की सदस्य-मंत्री रहीं। वह इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में एशियाई कला परियोजना की अध्यक्ष भी थीं।

प्रमुख कृतियाँ : ‘द स्क्वायर एंड द सर्कल ऑफ़ इंडियन आट् र्स’, ‘भारत : द नाट्यशास्त्र’, ‘ट्रेडिशंस इन इंडिया फ़ोक डांस’, ‘इंडियन क्‍लासिकल डांस’, ‘रोल ऑफ़ कल्‍चर इन डेवलपमेंट’, ‘सोशलिज़्म एंड सोसायटी’, ‘इंडियन हैंडीक्राफ़्ट्स’, ‘गीतगोविन्‍द’ आदि।

निधन : 16 सितम्‍बर, 2020

 

 

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