Jigar Moradabadi

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जिगर मुरादाबादी
जिगर मुरादाबादी की शायरी ग़ज़ल कहने की पुरानी परम्परा और बीसवीं सदी के मध्य और अन्त की तख़्लीक़ी उपज का ख़ूबसूरत सम्मिश्रण है। जिगर शायरी में नैतिकता की शिक्षा नहीं देते लेकिन उनकी शायरी का नैतिक स्तर बहुत बुलन्द है। वो ग़ज़ल कहने के पर्दे में इंसानी ख़ामियों पर वार करते गुज़र जाते हैं। उनका कलाम बनावट से रहितऔर आमद से भरा हुआ है, सरमस्ती और दिल-फ़िगारी, प्रभाव और सम्पूर्णता उनके कलाम की विशिष्टताएँ है।

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