Daya Krishna

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दया कृष्ण

दया कृष्ण (1924-2007) भारत के प्रमुख दार्शनिकों में एक थे। निरन्तर प्रश्नाकुलता के कारण उनको भारत का ‘सुकरात’ कहा जाता था। उनकी रचनात्मकता अनेक क्षेत्रों में मुखर हुई जो उनकी पुस्तकों के शीर्षकों से भी झलकती है। दया जी की पुस्तकों में प्रमुख हैं : ‘द नेचर ऑफ़ फ़‍िलॉसॉफ़ी’, ‘पोलिटिकल डेवलपमेंट’, ‘पश्चिमी दर्शन का इतिहास’, ‘सोशल फ़‍िलॉसॉफ़ी : पास्ट एंड फ़्यूचर’, ‘द आर्ट ऑफ़ कन्सेप्चुअल ; एक्‍सप्‍लोरेशंस इन ए कन्सेप्चुअल मैझ ओवर थ्री डेकेड्स’, ‘प्रोलेगोमेना टू एनी फ़्यूचर हिस्टीरियोग्राफ़ी ऑफ़ कल्चर्स एंड सिविलाइजेशंस’ और ‘सिविलाइजेशंस : नॉस्‍टेल्जिया एंड यूटोपिया’, ‘टुवर्ड्स ए थ्योरी ऑफ़ स्ट्रक्चरल एंड ट्रांसेडेंटल इल्युजंस’। 

अपने जीवन के उत्तर-काल में दया जी के लेखन ने भारतीय दर्शन को लेकर अनेक महत्त्वपूर्ण सवाल खड़े किए। दया जी ने तीन दशकों तक भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् की पत्रिका का सम्पादन किया; सम्पादक के रूप में वे उस पत्रिका में ‘नोट्स एंड क्वेरीज’ खंड का लेखन करते थे। उनके प्रमुख लेखों में शामिल हैं : ‘आर्ट एंड द मिस्टिक कांशसनेस’, ‘टाइम ट्रुथ एंड ट्रांसेडेंस’, ‘द कांसेप्ट ऑफ़ रेवल्‍यूशन : ऐन अनालिसिस’।

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