Aava Navako

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आवा नवाको

सन् 1943 में तोक्यो में जन्मी आवा नाओको को काल्पनिक दुनिया और परियों के देश की शहज़ादी कहा जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। ख़याली दुनिया और परियों के माध्यम से समाज के विभिन्न पहलुओं का वास्तविक चित्रण करने में इन्हें महारथ हासिल थी। प्रकृति और समाज का चित्रण मात्र इनका उद्देश्य नहीं था। नाओको चाहती थीं कि इंसान

प्रकृति के सौन्दर्य और संसाधन का भोग अपनी आवश्यकता के अनुरूप करे। ‘लोमड़ी की खिड़की’ में इनका यह सन्देश स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है।

इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं : ‘खित्सुने नो यूशोकुकाइ’ (‘लोमड़ी की दावत’, 1976) ‘तोई नोबारा नो मुरा’ (‘दूर जंगली गुलाबों का एक गाँव’, 1981), ‘काजे तो कि नो उता’ (‘हवा और पेड़ के गौत’, 1972) इत्यादि।

सन् 1970 में इन्हें ‘सानशोक्को’ नामक कहानी पर ‘जापान बाल साहित्य नवागत पुरस्कार’ हासिल हुआ। सन् 1973 में इन्हें ‘काजे तो कि नो उता’ और ‘खित्सुने नो मादो’ के लिए ‘स्कूल संस्थान साहित्य पुरस्कार’ एवं सन् 1981 में ‘तोइनोबारा नो मुरा’ पर ‘नोमा बाल साहित्य कला परिषद पुरस्कार’ से नवाज़ा गया। सन् 1984 में ‘काजे नो रोरासुकेतो’ पर ‘नीइमी नानकिचि बाल साहित्य पुरस्कार’ से इन्हें सम्मानित किया गया।

निधन : सन् 1992

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